न दिखायी हुई महानता
न दिखायी हुई महानता
तुम पतंग हो तो मैं धागा
तुम नाव हो तो मैं पतवार
तुम चित्र हो तो मैं कूँच
तुम शिल्प हो तो मैं छेनी
तुम पुरुष हो तो मैं स्त्री
उडती पतंग देख कर लुफ्त उठाते
धागे के महत्व को बिसराते
नाव पर चढ कर तारीफ करते
पतवार के बारे में नहीं सोच सकते
शिल्प की सजीवता पर मुग्ध हो जाते
छेनी की मेहनत को नहीं पहचान सकते
पुष्प के सुगंध से तन्मय हो जाते
उसके आधार वृंत पर ध्यान नहीं देते
पुरुष के विजय पर बगल बजाते
उसे महान बनाने वाली स्त्री को भूल जाते ।
Comments
Post a Comment