शिव तांडव
शिव तांडव
तेलुगु मूल : राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त नाट्याचार्य,
तेलुगु मूल : राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त नाट्याचार्य,
भरत कलाप्रपूर्ण श्री कोराड नरसिंहाराव, एम.ए.
हिंदी अनुवाद :डॉ . बी .विश्वनाथाचारी
“ सर्वेंद्रियाणां नयनं प्रधानं “ नयन से देखा हुआ यह मनोहर नाट्य का दृश्य अंतर्मन में स्थित होकर आत्मानंद देता है । शिव रूप को हमारे सामने साक्षात्कार करानेवाला यह ‘ शिव तांडव ‘ देखनेवालों के लिए मोक्ष द्वार खोलता है । इसमें शिव से होनेवाले सृष्टि – स्थिति –लय कार्यों का अद्भुत अवलोकन कर सकते हैं ।
सौंदर्य विश्वव्यापी विश्वजनीन वस्तु है । यह विश्व प्रकृति और पुरुष का अनोखा संयोग है । यह नित्य चैतन्यमय है । यही सत्य, यही शिव और यही सौंदर्य है । इस तरह निरंतर चलनेवाली विश्व चैतन्य प्रक्रिया ही शिव तांडव है । दिव्य सौंदर्य से शोभायमान प्रकृति(महादेवी) के वीक्षण से शिव प्रेरित होता है । दिव्य आनंद से चैतन्यवान बनता है । यही चैतन्य सृष्टि-स्थिति-लय का मूल केंद्र है । शिव और शक्ति अभिन्न हैं । अभेध्या और अविभाज्य हैं । ऐसे शिव शक्ति स्वरूप परमेश्वर के मन में सृष्टि करने का संकल्प हुआ । इस संकल्प से स्पंदन हुआ, उस स्पंदन की शक्ति से ही सृष्टि हुई । समस्त सृष्टि कार्य उसका नृत्य रूप ही है । इसी वजह से भरत मुनि ने कहा कि नाट्य का जन्म सौंदर्य की सृष्टि के लिए हुआ है । सौंदर्य ही शिव है । नृत्य दिव्य तथा भव्य कला है, जिससे अमर तथा असीमित आनंद मिलता है ।
महाशिव संध्या समय में करनेवाला नृत्य त्रिगुणात्मक है । इसमें दो हाथों में त्रिसूलपाणी बनकर शिव नाचते हैं । युह त्रिसूल सत्व, रज और तमो गुणों का संकेत हैं । यह नृत्य शिव शक्तीयों का मिलन है । शिव शक्तियों का पहला संयोग यहाँ होकर सृष्टि का कारण हुआ । सत्व गुण का प्रतीक स्वर्ग लोक है । रजो, तमो गुणों का प्रतीक मर्त्य, पाताल लोक है । शिव शक्तियों के चैतन्य से ही इन तीनों लोकों में सृष्टि हुई । इन त्रिगुणात्मक प्रक्रिया का परिणाम ही शिव तांडव है । इसी तरह के महामहिमान्वित सर्व चराचर युक्त अंड पिंड ब्रह्मांड की सृष्टि, स्थिति ओर लय होते हैं । पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश पंच भूतों में अपनी शक्तियों को प्रसार करते हुए सृष्टि कार्य होता है और फिर अवसर आने पर समस्त शक्तियों को अपने में लय करते हुए चलनेवाला निरंतर चैतन्य ही शिव तांडव है । वही-
“ आंगिकं भुवनं यस्य वाचकं सर्व वाङ्मयं
आहार्यं चंद्रताराधितं वंदे तात्विकं शिवं “
पतंजलि महर्षि कटि के ऊपर भाग मनुष्य रूप से तथा कटि के अधो भाग से सर्पाकृति से है । उसने महाशिव के मनोहर तथा चिन्मय चिरंतन चिदानंद तांडव नृत्य को देखकर तन्मय से भाव विभोर होकर अत्यंत रमणीय वर्णन किया ।
“ सदंचित मुदंचित निकुंचित पदं झल झलं चलित मंजु कटकं “
प्रातः काल में सहस्र लिंग पूजा करनेवाला महा प्रखांड पंडित, संगीत साहित्य नृत्य आदि ललित कलाओं में निष्णात रावण अपनी भक्ति को निरूपित करने के लिए कैलास पर्वत को उखाडकर अपनी भुजाओं पर उठा लिया । उस दसकंठ रावण ने अपने पेट को काट कर, अपने आंतों को बाहर निकालकर,
उन पर रुद्रवीणा बजायी ।
उस समय कैलास गिरि पर आदि देव एवं देवी का नयनानंदकर तेजो विराजित तांडव नृत्य का अवलोकन करते हुए, रावण इस तरह वर्णन किया ।
“ जयत्व दब्रविभ्रमत् भ्रमत् भुजंग मस्पुरत् “
यह रावण स्तव लोक प्रसिद्ध होकर, हमारे मन में तांडव दृश्य साकार करता है । इस प्रकार महाशिव के तांडव से विश्व चक्र का भ्रमण अनवरत, अविश्रांत, अविघ्न होकर सदा चलता है । नृत्य परमेश्वर का स्पंदन है । पहले पहल स्वयं स्पंदित होकर, बाद में दूसरों में स्पंदन लानेवाली शक्ति ही नाट्य है । अंग, उपांग, प्रत्यांग तथा संपूर्ण मानव शरीर रोमांचित होकर तादात्म्य स्थिति को लानेवाला नाट्य अभ्यास सुलभ साध्य नहीं है । इसके लिए विशिष्ट देह सौष्टव, स्थिर मनोदृष्टि, अभ्यास में निरंतर ध्यान लगानेवाले ही नाट्य कर सकते हैं । सद् गुरु के सेवाफल से सुशिक्षित होनेवाला ही नृत्य कर सकता है । इस शरीर का निर्माण ब्रह्मांड के समान है । इस देह में जीव और परमात्मा आवास करते है ।
“ त्रिशंगेषु तिष्टंति देवता समुपाश्रिता
ब्रह्मरंध्रं स्थिता देवाः सदा शिव इतीरीतः “
ब्रह्मरंध्र में सदाशिव, ललाट में क्षेत्रपाल, कटि तथा मनोबंध में महादेव, कर में लक्ष्मी, कराग्र में पार्वति, वक्षस्थल में हृषिकेश, स्थन में मेरु-मंदर, जघन में पृथ्वी, ऊर्ध्व उरु भाग में देवेंद्र, नासिकाग्र में वायु, पादों में चंद्र, सूर्य आदि देवता आवास करते हैं । समस्त देवता महाशिव के इच्छानुसार अपने अपने कार्यों को नियमानुसार कर रहे हैं ।
परमशिव की इच्छा से शुरु हुआ सर्व शक्तियों का चलन ही शिव तांडव है । इस तरह शिवमय शरीर से तांडव करनेवाला नाट्यविद अद्वैतस्थिति पाकर स्वयं शिव होता है । यही इस नाट्य का फल तथा मोक्षफल है । सुंदर नटराज को एक बार अवलोकन करने से इस सृष्टि का रहस्य अवगत होगा ।
नटराज स्वरूप परमशिव अखंड तेजोविराजित ज्वाला मंडल में है । उस स्वामी का चारों ओर वृत्ताकार चक्र है । इस अनंत विश्व में अविरत प्रणवनाद “ ऊँ “ कार है ।
सर्वेजनासुखिनो भवन्तु...
Comments
Post a Comment